रेशम की राखी |
वो भी एक बहन थी, गरीबी से तंग थी!
पर मस्त-मलंग थी,स्वाभिमानी बहन थी!!
वो रेशम की राखी लाती कहा से!
भाई की कलाई पे सजाती कहा से!!
आँखों पे आशु छुपा-छुपा के!
लोगो की नज़रे बचा-बचा के!!
सूत के धागे पिरोया फिर उसने!
उस धागे से राखी बनाया फिर उसने!!
लाखो सपने सजा सजा के रखी थी!
मैं आउंगी भैया बता के रखी थी !!
पर राखी की थाली सजाउंगी कहा से!
दो मिठाई खरीद कर लाउंगी कहा से!!
पैसे तो घर में सदियों से नहीं है!
सय्या है परदेश,घर पे नहीं है !!
गुर की एक चासनी बनाया !
उस चासनी से फिर एक लड्डू बनाया!!
राखी को पहुंची भाई के आँगन में !
कारो के काफिले से सजी उस भवन में!!
थे आंखे नम ,तन पे कपरे भी कम!
भाई ने जब प्यार से पुकारा,हुए आंखे नम !!
बंधवाई राखी बरे प्यार से भाई ने!
गले से लगाया फिर भौजाई ने !!
दिये तौह्फे में सोने का गहना !
तू सबसे प्यारी है ए-मेरी बहना !!
बहना ने बोला मेरी प्यारे भैया !
तेरा प्यार ही बहुत है, मान मेरा कहना !!
रिश्ते में है प्यार,बस येही है मेरा गहना !
इतना है अनुरोध बस घर-आते रहना!!
इतना है अनुरोध बस घर आते रहना!!!!
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Beautifully written and emotionally touchy………… Vishal.
thanks mam, bus yu hi kisi ki yad aa gayi thi, wo mere yaha kam karti thi, us samay main sayad 4 ya 5 ka student raha hounga
Sach main bahut achha likha hai…… All the best.
thanks
very nice poem