मीडिया समाज का आइना ?

अगर श्री राम के ज़माने में ये मीडिया होती तो ===—
लंका से लौटने पर भगवान राम की प्रेस कोंफ्रंस में
मिडिया द्वारा पूछे गए सवाल
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# आपके टीम के श्री हनुमान को लंका सन्देश देने भेजा था
पर उन्होंने वहाँ आग लगा दी| क्या आपकी टीम में अंदरूनी
तौर पर वैचारिक मतभेद है?# क्या हनुमान के ऊपर अशोक वाटिका उजाड़ने के आरोप में वन विभाग द्वारा मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए?
…# आपके सहयोगी श्री सुग्रीव पर अपने भाई का राज्य
हड़पने का आरोप है| क्या आपने इसकी जांच करवाई?#. क्या ये सच है की सुग्रीव की राज्य हड़पने की साजिश के
मास्टर माइंड आप है?

# आप चौदह साल तक वनवास में रहे| आपको अपने खर्चे
चलाने के लिए फंड कहाँ से मिले?

# क्या आपने उस फंड का ऑडिट करवाया है?

# आपने सिर्फ रावण पर हमला क्यों किया, जबकि राक्षस
और भी थे? क्या ये लंका की डेमोक्रेसी को अस्थिर करने की साजिश थी?

# क्या ये सच नहीं है की रावण को परेशान करने के मकसद से
आपने उनके परिवार के निर्दोष लोगो जैसे कुम्भकरण और
मेघनाद पर हमला किया?

# क्या आपकी टीम के हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी की
जगह पूरा पहाड उखाड़ लेना सरकारी जमीन के साथ छेड़छाड़ नहीं?

# क्या ये सच नहीं कि आपने हमले से पहले समुद्र पर पुल
बनाने का ठेका अपने करीबी नल और नील को नहीं दिया?

# आपने पुल बनाने के लिए छोटी छोटी गिलहरियों
से काम करवाया| क्या इसके लिए आप पर बाल श्रम
कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए?

# आपने बिना किसी पद पर रहते हुए युद्ध के समय इन्द्र से
सहायता प्राप्त की और उनका रथ लेकर रावण पर हमला किया|
क्या आप इन्द्र की टीम ए है?

# इस सहायता के बदले में क्या आपने इन्द्र को ये वादा नहीं किया
की अयोध्या का राजा बनने के बाद आप उन्हें अयोध्या के आस
पास की जमीन दे देंगे?

# आप युद्ध में अयोध्या से रथ न मंगवा कर इन्द्र से रथ लिया
क्या ये इन्द्र कि कंपनी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया?

# क्या आपने जामवंत को सहायता के बदले राष्ट्रपति बनाने का वादा नहीं किया?

Image#  और आखिरी सवाल, की आपके रहते भरत को राजा बनाया गया| क्या आपकी नेतृत्व क्षमता पर दशरथ जी को संदेह था?.
                                                                                                                     अज्ञात!
इस पोस्ट  पे मेरा किसी भी प्रकार का कोई कॉपीराइट नहीं है, , साथ ही ये भी बता दू की मेरा किसी की भी भावना पे चोट पहुचने का कोई मंशा नहीं है केवल एक जोक के तौर पर ही ले  धन्यवाद्
विशाल श्रेष्ठ

सार्थक सिनेमा और भ्रस्टाचार कि लड़ायी

आजकल हर जगह भ्रस्टाचार  के खिलाफ एक माहोल बनता दिख जायेगा , हर जगह येही बाते होती हैं और हद तो तब है जब भ्रस्ट लोग भी कहते है की हम भ्रस्टाचार  के खिलाफ है, जो भी हो एक माहोल तो बनता दिख रहा है, इसी बीच कई फिल्मे आई और गयी, जिन फिल्मे को देखने मैं गया और मैंने उसे सराहा वो फिल्मे पिट गयी , क्युकी लोग समाज सुधरने की बात तो करते है, लोग भ्रस्टाचार के खिलाफ बात तो करते है मगर इन मुद्दों पे बनी फिल्मे देखने नहीं जाते , पिछले साल जून  माह में एक फिल्म आई थी – “संघाई” -अभय देओल ,इमरान हासमी और कल्कि अभिनीत फिल्म को दिवाकर  बनर्जी ने बनाया था  भ्रस्टाचार और भू माफिया के खिलाफ ये फिल्म थी, ये भी दिखाया गया किस तरह राजनेता और मंर्त्री की मिलीभगत से इतना बरा घोटाला और अन्याय गरीब लोगो के खिलाफ होता है, कुछ ऐसा ही आज के परिवेश में श्री गडकरी जी और श्री शरद जी के मिली भगत से हुआ है (वाय पि सिंह और अंजलि दमनिये के अनुसार ) लवासा शहरी परियोजना पुणे के पास जिससे  सरकार  और गरीब जनता  दोनों  को नुकसान  है मगर सब चुप है| Imageकोइ हमारा नहि और हम किसि के नहि!

इसी तरह प्रकाश झा की फिल्म आयी  “चक्रव्यूह ” इसी ओक्टुबर माह में जिसमे अभय देओल,अर्जुन रामपाल और मनोज वाजपेयी ने मुख्या भूमिका निभाई है,जिससे सायद दर्शक पसंद भी करे और बॉक्स ऑफिस पे कुछ कमाई भी हो जाये, पहले तो मैं इस फिल्म की गीत की चर्चा करू जो की विवाद में है , मगर ये गाना आज के परवेश में सर्वथा उचित है, मैं इस गाना की पंक्तिया पोस्ट कर रहा हु और आशा करता हु की कोई विवाद न हो – 

“भैया देख लिया है बहुत तेरी ये सरदारी रे …..
अब तो हमरी बारी देना ……………
महंगाई महामारी हमरा पैसा खा लिया
गरीबी हटाने गए थे, गरीबो को हटा दिया…
सरबत की तरह देश को…
गटका है गटागट…….

आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट!!!!
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट!!!!
बिरला! हो या टाटा! अम्बानी! हो या हो बाटा!!
अपने-अपने चक्कर में देश को है बाटा!!
अरे! हमरे ही खून से इनका
इंजन चले चले धकाधक!!
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट!!!!
आम आदमी की जेब हो गयी है सफाचट!!!!””
Image
 
चक्रव्यूह फिल्म नक्सलवाद और सरकारी  निकम्मिता को दर्शाती है, किस तरह करीब १०० से भी जयादा जिलो में इन नक्सलवादियो की समानांतर सरकारे है और सरकार भी लगभग उदासीन है| कैसे हमारे ही जमीन पे हमारे भाई मारे जाते है, 
दोनों और से मारे जा रहे है, माँ भारती के लाल एक दुसरे के खून के प्यासे हो गए है, क्यों? क्युकी विकास आजतक वह| पहुच नहीं पाया है उस पर से जमींदार किस्म के लोग और सरकारी बाबु के जुल्म का नतीजा है या हो सकता है|, ये हमारी और आपकी उदासीनता का नतीजा भी है, हमें सरकार से पूछना चाहिए की कब तक आखिर  ये  होता रहेगा?
आखिर कब जागेंगे हम?, कभी तो मेहेंगाई और अपने छोटे-मोटे मुसीबतों को छोर कर इन बरी मुसीबतों से लरे, भ्रस्ताचार और नक्सलवाद बहुत बरी समस्या है, और ये हमारे देश की जरे काट रही है, आज श्री अन्ना हजारे, श्री वाय पि सिंह, रिटायर्ड  जेनरल  वि के सिंह , किरण बेदी, मेघा  पाटेकर और जस्टिस संतोष हेग्रे आदि  जैसे समाज सेवक है जो इन समस्याओ के खिलाफ मोर्चा खोल रखे है, हमें इनका साथ देना चाहिए और ये हमारा भारत है हमें अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए |
साथ ही सार्थक सिनेमा के नाम पे बन्ने वाली इन समाज के आइना स्वरुप फिल्मो से काफी कुछ सीखना चाहिए हमें, और रोमांस और लव सेक्स के अलावा भी फिल्मे बनती  है जिसे सराहा जाना चाहिए|
और अंत में विदा लेते  समय किसी भी प्रकार के त्रुटी के लिए छमा-प्रार्थि हुँ, इमेज फिल्मो के विज्ञापन से लिया गया है!
  धन्यवाद !
 
विशाल श्रेष्ठ 

पिया मोरा परदेसी (a poem)

पिया मोरा परदेसी

 

बेदर्द सर्दी , दर्द का जाने , पिया मोरा परदेसी है|
मुझ  बिरहन की पीर न जाने , पिया मोरा परदेसी है|
नई बियाहे , घर लेके आये ,दो चार दिनों में दियो बताये,
जा रहा परदेश , तू खुश  रहियो ससुराल में ,
मैं पूछो, जरा दियो बताय, कैसे खुश रहू इस हाल में,
न देखू तुझको जिस जिस पल, मोरा जिया जले है,
मुझ बिरहन का घर तो बस बिरह से चले  है ,
ऊपर से सर्द हवा को झोका, जब छुवे है,
सच कहू मोरा रोम रोम, तेरे छुवन को चाहे रे  , 
श्रृंगार करूँ किस कारण, कौन मोरा मन भाये  रे ,
ना दर्पण देखू, न देखू कौन क्या समझाए रे,
तोरा बिन एक पल मोरा चैन न आये रे,
अब तो आजा, बरस भयी, नैन राह टके जाये  है, बेदर्द सर्दी , दर्द का जाने , पिया मोरा परदेसी है|

(c) vishal shresth     

 
 
note- kindly share or post my poem with my name only
thanks 

सनसनी -एंकर “अरबिंद केजरीवाल”

अरबिंद केजरीवाल ने सनसनी फैला रखी थी आज गडकरी पे बरा खुलाशा होगा! हुआ क्या? – खोदा पहार निकला चूहा! शाम होते ही, आरोप लगते ही बहस शुरू हो गया की केजरीवाल का दावा कितना सच्चा कितना झूठा!  (( मैं (विशाल ) यहाँ किसी के सपोर्ट  या विरोध में नहीं केवल श्री वाई पि सिंह के बातो पे आपका धयान खींचना चाहता हु |))

आज मीडिया में एक और खुलासा हुआ , आज बारी थी श्री वाई पी सिंह की,पूर्व आईपीएस ऑफिसर, सीनियर ऐडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता वाई पी सिंह ने अरविंद  केजरीवाल पर केंद्रीय मंत्री शरद पवार को बचाने का आरोप लगाते हुए कई गंभीर सवाल खड़े किए। साथ ही उनके द्वारा लगाये गए आरोपों को भी गैर क़ानूनी बताया, उन्होंने ये भी कहा की केजरीवाल आरोप लगा  कर  भूल  जाते है , उसे अंजाम  तक  नहीं पहुचाते , इस तरह  की सस्ती राजनिति  नहीं करनी चाहिए, ये वही वाई पि सिंह है जो पूर्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के अग्रिणी कार्यकर्ता थे और उन्होंने आदर्श घोटाला उजागर करके मुख्या-मंत्री तक को इस्तीफा देना पे मजबूर कर दिया था|

इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने बताया था कि गजानन घडगे का गडकरी से (जमीन हथियाने )विवाद भी चल रहा है। हालांकि, खुद गजानन ने इन आरोपों को गलत बताया है। मराठी न्यूज़ चैनल से बातचीत में गजानन घडगे ने कहा कि बीजेपी अध्यक्ष से उनका कोई झगड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि गडकरी की वजह से तो हमें फायदा ही हुआ है।वाई पी सिंह ने केजरीवाल पर एक खास नेता को बचाने का आरोप लगाया है।

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वाई  पी सिंह ने अरविंद केजरीवाल के बुधवार के खुलासे पर हमला करते हुए कहा है कि उन्होंने नितिन गडकरी पर खुलासा कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खिलाफत की है। उन्होंने अजित पवार, सुप्रिया सुले और शरद पवार के खिलाफ बड़े सबूत होने के बाद भी कोई खुलासा नहीं किया। सिंह को उम्मीद थी कि केजरीवाल बुधवार को शरद पवार को लेकर खुलासा करेंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अपने खुलासे में बड़े खिलाड़ियों का नाम नहीं लिया।मीडिया के पास जाकर केवल सनसनी फैलाना ही मकसद तो नहीं उनका |

सिंह ने आरोप लगाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि कृषि घोटाले में उपयुक्त डॉक्यूमेंट सामने नहीं रखे गए हैं। शरद पवार के खिलाफ खुलासे के लिए अरविंद केजरीवाल के पास काफी सबूत थे फिर भी उन्होंने ऐसा नहीं किया। अरविंद के बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के खुलासे पर सिंह ने कहा कि केजरीवाल ने ये कहकर कि किसानों की जमीन किसानों को मिलनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध किया है। जिस संदर्भ में केजरीवाल ने ऐसे बयान दिए वो गलत था। वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जब अधिग्रहीत जमीन बच जाए तो उसका पब्लिक ऑक्शन होना चाहिए|

ईपी सिंह ने लवासा के मुद्दे पर खुलासा करते हुए कहा कि लवासा एक टाउनशिप है। ये एक निजी कंपनी है। सिंह ने शरद पवार के भतीजे अजित पवार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अजित पवार ने साल 2002 में 348 एकड़ जमीन लेक सिटी को दे दी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि 23 हजार रुपये प्रति महीने की दर से 348 एकड़ जमीन लवासा को 30 साल की लीज पर दे दी। जिसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है।

उन्होंने आरोप लगाया कि वन टू वन निगोशिएशन में अजित पवार ने वो जमीन दे दी। आगे वाई पी सिंह ने खुलासा किया कि लेक सिटी कॉरपोरेशन में 20.81 फीसदी ज्वाइंट शेयर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और दामाद सदानंद सुले का है। सुप्रिया, अजित पवार की चचेरी बहन हैं। वाई पी सिंह के मुताबिक 10.4 फीसदी सुप्रिया और 10.4 फीसदी शेयर उनके पति सदानंद के हैं। सिंह के मुताबिक साल 2006 में सुप्रिया ने अपनी शेयर होल्डिंग बेच दी। हालांकि उस समय के रिवेन्यू डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रमेश कुमार ने साफ कहा था कि ये जमीन कृष्णा वैली कृषि प्रोजेक्ट के लिए है। इसके बाद भी वो जमीन सुप्रिया को दे दी गई। नारायण राणे उस वक्त मंत्री थे।

शरद पवार पर आरोप लगाते हुए सिंह ने कहा कि शरद पवार केंद्रीय कृषि मंत्री हैं। उनका महाराष्ट्र के जमीन, टाउन, रोड के मामले में कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने इसमें भी हस्तक्षेप किया। सिंह ने आरोप लगाया कि लवासा में ‘एकांत’ नामका एक गेस्ट हाउस है। यहां शरद पवार ने अपने पावर का इस्तेमाल करते हुए राज्य के अमले को बुलाया और बैठक की। इस बैठक में फैसला लिया गया कि लावासा को जो मदद चाहिए वो दी जाए। सिंह ने कहा कि इस घोटाले को उजागर करने के लिए रमेश कुमार को विक्टिमाइज किया गया।

वाई पी सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि जो कुछ आज मैं प्रेसवार्ता में बता रहा हूं ये अरविंद केजरीवाल को कल अपनी प्रेस वार्ता में बताना चाहिए था। वाई पी सिंह ने कहा कि वो सुप्रिया और उनके पति सदानंद, नारायण राणे, शरद पवार और अन्य लोग जो इस कृषि घोटाले में शामिल हैं उनके खिलाफ केस करेंगे। वाई पी सिंह ने कहा कि उन्होंने इस मामले की जानकारी अन्ना हजारे को भी दी थी लेकिन शरद पवार के लिए अन्ना के दिल में सॉफ्ट कॉर्नर है।

 

                                                                                                                                         

 

 साभार –http://khabar.ibnlive.in.com/news/83982/1 & http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16862948.cms

 

A Dream worth Dreaming… (poem)

A Dream worth Dreaming…

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note-image credit joice karyadi and poem credit-sorry dnt knw

अरविन्द -“the twitter”

अरविन्द केजरीवाल चुन चुन कर कांग्रेसी नेताओ को फसा रहे है ,अच्छा है कोई तो है जिसने मनमोहक सरकार की इट-से-इट बजा रखी है,
अरविन्द केजरीवाल ने एक नया फ़ॉर्मूला निकला है ट्विट (चहको)करो और आगे बढ़ो, फिर ट्विट(चहको)करो फिर आगे बढ़ो , नहीं समझे ! मतलब की आरोप  लगाओ और दो दिन बाद उसे उसके हालत पे छोर दो, फिर आरोप लगाओ और फिर उसे उसके हाल पे छोर दो, यहाँ सिर्फ खुर्सिद के मामले में वो कुछ संजीदा दिख रही है , मगर उनके आरोप प्रत्यारोप की दौर में हंगामा बहुत होता है, मिडिया खबर बहुत दिखाती है, आज मिडिया अरबिंद के कदमो का इंतजार करती है, मगर अरविन्द खुद कोई कठोर कदम नही उठाते , न ही कोर्ट में ही इन आरोपी नेताओ को घसीट रही, आखिर ये कौन से सबूत है जो इन नेताओ को जेल नही भेजवा सकती या कम से कम अदालती चककर नही लगवा सकती, शंका होती है, वेसे भी मुझे उनपे भरोसा कम ही है,क्युकी मैं राजनेता पे भरोसा नही कर पाता|
ये खुर्सिद मामला भी ओपरेसंन धृतरास्त्र  के कारन ही सुर्खियों में आया और आज भी सबसे आगे बढ़ चढ़ कर आजतक ही लोगो को दिखा रही है,इधर  विकलांग नेता जिन्होंने आन्दोलन सुरु करने की कोशिस की थी वो भी नेपथ्य में  खो गयी सी लगती है, सिर्फ केजरीवाल केजरीवाल की गुन्ज सुनाई देती है,
राजनीती में भूचाल आ गया लगता है, मगर हकीकत एसी नही, जो लोग आज केजरीवाल के साथ खरे है उनमे से ७५ या ८० % लोग इस यु पि ए सरकार से दुखी है और चाहती है की ये सरकार चली  जाये, और इनमे से कितने लोग केजरीवाल की आनम पार्टी को अपना मत दान देंगे ये देखना है, सबसे रोचक बात आधे से जयादा केजरीवाल स्पोटर युवा है, वो भी वो युवा जिनको मतदान का अधिकार नही, कारन कई है जैसे -१ – वो पदने बाहर  से आये  है , २- कामकाजी युवा है जो बाहर से है,३- बीजेपि के वोटर है ४- कांग्रेस से त्रस्त है मगर पता नही कीसे  वोट दे?,
अब अगर केजरीवाल पार्टी कोई ठोस और विस्वसनीय कदम नहीं उठाती तो ये याद रखे की कुछ लोग उन्हें अन्ना जी का गद्दार चेला मानते है, गद्दार चेला! इस बदनामी से उन्हें  बाहर निकलना ही होगा, जिसके लिए कठोर इक्छा सकती की जरुरत है|

और जैसा की होता आया है श्री केजरिवाल  ने एक बार फिर आरोप लगाने और हंगामा / आन्दोलन 3-४ दिन बाद कर दी स्थगीत , जहा की उनका बार बार कहना था- जब तक खुर्सिद की मंत्री पद चलेगी तब  तक हमारा आन्दोलन चलेगा! मगर खुर्सिद को तंग करने के बाद वो अब किसी दुसरे नेता को घेरने की तय्यारी में लग गए गएुछ लोग कह सकते है की-एसा नही है ,केजरीवाल जी फरुखाबाद से खुर्सिद को घेरेंगे| जी हा वो वह भी दो दिन हंगामा करेंगे बस, जब श्री अन्ना हजारे अनसन या आन्दोलन करते थे तब जब तक परिणाम या कोई ठोस अस्वासन  न मिले तब तक वो चुप  नही होते थे, क्युकी -“सिर्फ हंगामा खरा करना अन्ना जी का  मकसद नही उनका मकसद है की कुछ परिणाम निकलना चाहिये”| याद रहे अन्ना जी ने 6 मंत्री को पद से हटवा चुके  है, उनके इक्छा सकती के आगे कितने  ही नेता ने घुटने टेके है , क्युकी साँच को आंच नहीं |
अरविन्द  जी चहके नही दृन्ध -प्रतिज्ञ रहे ,अन्ना जी से सीखना ही  होगा इक्छा-शक्ति कैसे बढाये और सत्य की राह  में कैसे आगे बढे|

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vishal shresth

जेपी तुमको न भूल पाएंगे

देश में संपूर्ण क्रांति की अलख जगाने वाले महान समाजवादी लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्मदिन आज था, मगर हमें याद नहीं रहा, शायद हमारी याददास्त कमजोर हो गयी है या वोलीवुड के महानायक के जन्मदिन की चकाचौंध में हमारी आंखे चुंधिया गयी,हम भूले तो भूले मगर बात बात पे जेपि का नाम लेकर अपनी समाजवादी और भ्रस्ताचार के विरुद्ध लारायी लरने वाले श्री केजरीवाल को भी उनका जन्मदिन याद नहीं रहा| जेपी के चेलो में  लालू. नितीश, रविशंकर, सुशिल मोदी,बी पि सिंह ,अजित सिंह, मुलायम, जैसे बरे नाम है , जो उनका नाम आज भी लेते है, मगर नितीश के अलावा किसी को भी उनको याद करते नहीं दिखा, कांग्रेस से तो वैसे भी कोई आशा है नहीं मगर जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के लोग भी अपने हीरो को भूल गए लगता है| 

उन्होंने कहा था -मेरी रुचि इस बात में नहीं की कैसे सत्ता हासिल की जाये, बल्कि इस बात में है की कैसे नियंत्रण जनता के हाथ में दे दिया जाये !
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एक ऐसे नेता जिसने सत्ता के शीर्ष पे बैठे लोगो को धुल चटा दी,मगर खुद कभी भी किसी पद से चिपके रहना पसंद नही किया, जिसने हुंकार भरी – “सिंहासन खाली करो की जनता आती है” (रामधारी सिंह के कविता) और एक लाख जनता उस समय (१९७५) में रामलीला मैदान पहुची थी| 
महात्मा गाधी,जवाहरलाल नेहरू और वह आचार्य विनोभा भावे से प्रभावित जेपी सबसे अलग सोच रखने वाले समाजवादी नेता थे,उनका जन्म बिहार के पावन भूमि में 11 अक्टूबर,1902 को सारण के सिताबदियारा में हुआ था। पिता श्री हसनू दयाल औए माता जी फूलो रानी बहुत ही सिम्पल धार्मिक परिवार से थे, माता जी से उनको काफी लागाव था और उनसे प्रभावित भी| उन्हें भगवद गीता से काफी प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने जीवन में आत्मसात कर लिया, ९ साल के उम्र में वो पटना पढने के लिया गए, १९१८ में दसवी के परिछा में  जिला मेरिट स्कोलोरशिप का पुरुस्कार जीता| १८ साल के उम्र में प्रभवति जी से १४ अक्टूबर १९२० को शादी हुए, ब्रज किशोर प्रभावती के पिता ने प्रभावती जी को कस्तूरबा गांधीजी के साथ गाँधी आश्रम अहमदाब भेज दिया, खिलाफत आन्दोलन में भागीदारी निभाई और अंग्रेजो के कालेज पटना को छोर के बिहार विद्यापीठ से पढाई की,पटना से पढ़ाई करने के बाद वह उच शिक्षा के लिये अमेरिका(१९२२) गए, लेकिन उनका मन में भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान देना का संकल्प हमेशा हिलोरे मारता रहा,और सेपतेम्बर १९२९ को भारत के ओर निकले नोवेम्बर को भारत वापुस आये,प्रभावती देवी उस समय तक गाँधी आश्रम में थी,

 प्रभावती के कहने पर गांधी से मिलने साबरमती आश्रम गए। गाँधी जी ओर नेहरूजी दोनों से साथ ही मुलाकात हुए, नेहरूजी ने सीधे तौर पे जेपी को योगदान देने को कहा, ओर जेपी नेहरूजी के साथ कूद परे,नेहरू के ही कहने पर जेपी काग्रेस के साथ जुड़े, आज़ादी की लारायी में बार बार जेल गए ओर अंगेजो की आंख की किरकिरी बन चुके जेपी नासिक जेल में राम मनोहर लोहिया ओर मिनो मसानी से १९३२ में मिले ओर उसके बाद उनकी भागीदारी आक्रामक हो गयी|

१९ अप्रैल १९५४ को आजादी के बाद वह आचार्य विनोभा भावे और उनके सर्वोदय आदोलन से जुड़े। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया। जेपी ने ५० के दशक में ‘राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना’ नामक किताब  लिखी। इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया था। शायद  सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी ने उठाई थी।  १९६० में प्रधानमंत्री नेहरू की कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल शामिल नहीं हुए ये साबित करता है की उनको सत्ता का मोह कभी नहीं था| बाद में वो बिहार की राजनीती ओर समाजसेवा में कूद परे, कौन नहीं जनता की ७४ में विधार्थी आन्दोलन सुरु की ओर राजनीती की दिशा ही बदल दी, सन १९७४ में वी एम् तर्कुंदे के साथ मिल कर Citizens for democracy  ओर १९७६ में People’s Union for Civil Liberties एन जी ओ बनाया जिसने समाजसेवा ओर नागरिक अधिकारों के लिए कार्य की, जेपी ने पांच जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में विशाल जनसमूह को संबोधित किया। यहीं उन्हें ‘लोकनायक’ की उपाधि दी गई| जयप्रकाश मैगसायसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और मरणोपरात उन्हें ‘भारत रत्‍‌न’ से विभूषित किया गया

 । मगर सन ७७ न होता तो हम जेपी के शक्ति को समझ नहीं पाते, सन ७५ में अलहबाद हायकोर्ट के द्वारा इंदिरा गाँधी की जित को कानून के खिलाफ कहा तो जेपी खुल कर इंदिरा के खिलाफ कूद परे, उन्होंने इस्तीफा माँगा ओर आन्दोलन सुरु कर दिया, ओर सम्पूर्ण क्रांति की रूप रेखा तैयार की, सम्पूर्ण क्रांति जिसे सरे देश ने हाथो-हाथ लिया, २५ जून ७५ को इंदिरा गाँधी ने घबरा कर इमरजेंसी लगा दी, आपातकाल- सरे नागरिक अधिकारों की निर्मम हत्या, लोकतंत्र के नाम पे कलंक , एक काला अध्याय!
रास्त्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के कविता से प्रभावित हो एक जय घोष किया जेपी ने हुंकार भरी – “सिंहासन खाली करो की जनता आती है” (रामधारी सिंह के कविता) और एक लाख जनता उस समय (१९७५) में रामलीला मैदान पहुची थी| राजनीती की दिशा बदल दी, इंदिरा की सत्ता के खिलाफ सारा देश जेपी के साथ खरा हो गया, ७७ में चुनाव हुए जेपि की जित ओर इंदिरा की हार हुई | २ साल बाद अपने ही लोगो की अति-महत्वकांछा के कारन सरकार गिर गयी, कोई न एक बदलाव तो आ ही गयी देश में| 
मगर इसके बाद की घटना काफी दुखद है, भारत का इतिहास रहा है की गांधीजी के हत्या के बाद किसी भी राजनेताओ की हत्या नहीं होता (आतंकवादी घटना छोरके) दुर्घटना होती है, लो! हो गयी एक ओर दुर्घटना! 
पटना बिहार ०८ ओक्टुबर ७९ अपने जन्मदिन के केवल ३ दिन पहले उनका निधन हो गया,७७ के आन्दोलन के जनक ७७ साल पूरा न कर सके, हृदय अघात ओर डायबिटीज के इलाज के लिए हस्पताल में भर्ती जेपी का निधन अचानक ही हो गया, मेरा मानना है की ये एक विवाद का विषय है, हा कोई साबुत नहीं दे सकता मैं, पूरा बिहार ओर उत्तर प्रदेश की साडी दुकाने ओर ऑफिस बंद हो गयी ओर समूचा भारत जेपी के निधन पे शोकाकुल हो गया|।
एक युग का अंत !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

जेपी तुम चले गए मगर हमारे हृदय से तुम्हे कौन निकालेगा , एक युग का अंत हो गया मगर एक युग की शुरुवात कर गए 
सचमुच जेपी तुमको न भूल पाएंगे 

 

विशाल श्रेष्ठ

 

नोट- हर किसी को अपना तर्क रखने का हक है, मेरे लेख से मतभेद होना आपका अपना निजी विकार होगा, आपका स्वागत है, कृपया विवाद न करे ओर स्वतंत्र विचारधरा  के पेरोकर बनके स्वस्थ परम्परा को आगे बढ़ाये

जगजीत सिंह –यथा नाम तथा गुण

जगजीत –  यथा नाम तथा  गुण

ग़ज़लप्रेमी कभी भी इस  नाम को नहीं भूल सकते, जगत को अपने सुमुधुर स्वर से जित चुके स्वर्गीय  श्री जगजीत सिंह की पुण्य तिथि १० ओक्टुबर को उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि!

जगजीत सिंह उर्फ़ जगमोहन सिंह का जन्म ०८ फेब सं १९४१ को  श्री गंगानगर राजस्थान में  हुआ था,श्री अमर सिंह और श्रीमती बच्चन कौर के घर में जन्मे इस चिराग का नाम जगमोहन था, किन्तु आस्था औए विस्वास के कारन नामधारी सिख गुरु जी   के कहने पे उनका नाम जगजीत रख दिया, शायद उनको उनके बाल्यावस्था में ही उनके जग को जित लेने का आभास हो चुका था|

जगजीत जी मेरे दिल  के काफी करीब है, एक समय था जब मै था और मेरे जगजीत जी के गीते थी, उस समय मेरे जीवन की धारा जगजीतजी की स्वर से चलती थी  जिन गीतों ने मेरे दिल में जगह बनायीं और मुझे कई बार गुनगुनाने को मजबूर किया उनमे से कुछ गीत है –

१-ये बतादे मुझे ज़िन्दगी , फुल क्यों सरे मुरझा गए

२-ये दौलत भी ले लो , ये सौहरत भी ले लो भले छिन लो हमसे मेरी

३-तेरे आने की जब खाबे महके  तेरे खुसबू से सारा घर महके

४-अगर  हम कहे और वो मुस्कुरा दे हम उनके लिए……

जगजीतजी ने  खालशा हाई स्कूल श्री गंगा नगर और डी ए भी कॉलेज जालंधर से शिक्छा प्राप्त करने के बाद कुरुछेत्र युनिवेर्सिटी हरियाणा से पोस्ट ग्राजूइत की डिग्री ली | उनके कालेज काल में ही लोग उनके प्रतिभा के कायल हो चुके थे|  उनके पिता का साथ और प्रोत्साहन बराबर उनको मिलता रहा, अपने शास्त्रीय संगीत की शिक्छा उन्होंने प्राम्भ में श्री पंडित छगनलाल शर्मा और बाद में  उस्ताद जमाल खान  से ली, उनके गुरु भी उनके लग्न से काफी प्रभावित थे, कितने कम लीग जानते थे की जगजीत जी गुरूद्वारे में भी गाते थे और वो एक पगरी पहनने वाले धार्मिक सिख थे| उनकी युवा-वस्था की तस्वीर है ये ——–

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मार्च १९६५ में जगजीत जी ने पहली बार अपने पिता को बिना बताये मुंबई की और रुख कर ही दिया, क्युकी अगर संगीत की छेत्र  में अपनि  प्रतिभा का लोहा मनवाना है तो मुंबई के फ़िल्मी जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी होगी ,मुंबई में लोगो ने उनके गीतों सराहा मगर एक सिख पगरी पहनने वाले सिख को  गजल जगत इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रहा था, की तभी उन्होंने अपने संगीत प्रेम के लिए न कहते हुए भी दुखी मन से पगरी त्याग दी|

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जगजीत जी को काफी संघर्ष करना परा की तभी(१९६७ में ) उनके जीवन में फूलो की महक लेकर एक बंगाली महिला का आगमन हुआ| चित्रा दत्ता, जो की खुद संघर्ष कर रही थी, अपने गायकी और दुखद वैवाहिक जीवन के संघर्ष में जगजीत का साथ चित्रा जी को एक नवजीवन प्रदान किया,सन १९६९ को डिवोर्स लेने के बाद चित्रा जी ने जगजीत से विवाह कर लिया, मगर उन दोनों का संघर्ष जारी रहा , उस समय पकिस्तान के गजल गायक सरे विस्व्  में छाए हुए थे , मगर कहते है न की प्रतिभा कभी बेकार नहीं जाती, १९७६ में जो हुआ उसने समय की धारा का रुख ही बदल दिया , द  आन्फोरगेतेब्ल जगजीत जी की पहली सुपरहिट अल्बम ने समूचे दुनिया को उनका आशिक बना दिया|

अर्थ (१९८१), साथ-साथ (१९८२) और प्रेमगीत(1982) फिल्मो में गाये गीत ने जगजीत जी को अमर बना दिया, उनके लाइव कंसर्ट में हजारो की भीर उमरने लगी,देल्ही, मुंबई, लन्दन, न्यूयोर्क और पाकिस्तान हर जगह उनको बुलाया जाने लगा|  उनके कुछ प्रसिद्ध गाने इस प्रकार है

प्रेमगीत (फिल्म)          होठो से छु लो तुम मेरे गीत अमर कर दो
अर्थ   (फिल्म)           झुकीझुकीसीनज़र
कोईयेकैसेबतायेकीवोतनहाक्यूहै
– तेरेखुसबूमेंबसेख़तमेंजलाताकैसे
– तूनहीतोज़िन्दगीमें
– तंइतनाजोमुस्कुरारहेहोक्यागमहैजिसको 
साथसाथ (फिल्म)       – प्यारमुझसेजोकियातुमने
– तुमकोदेखातोयेख्यालआया
– येबतादेमुझेज़िन्दगी
– येतेराघरयेमेराघर
– युज़िन्दगीकेरहमें 
 रावण       –          हमतोयुअपनीज़िन्दगीसेमिले
नरगीश –                 दोनों के दिल है मजबूर
मम्मो –            हज़ार बार रुके हज़ार बार चले

निम् का पैर (टी वि सीरियल)-मुह की बात सुने हर कोई

दुश्मन – – चिठ्ठी न कोई सन्देश

सरफ़रोश – होशवालो को खबर क्या

तरकीब – किसका चेहरा अब मै देखू

तुम बिन- कोई फरियाद दिखाई

जोगर्स पार्क – बड़ी नाजुक है उलझन

पिंजर – हाथ छुते भी तो

खाप- तुमसे बिछर के ( ये वो गीते है जो मुक्झे बहुत पसंद है )

इन फ़िल्मी गीतों के अलावा जगजीत जी के कई एल्बम भी काफी हिट हुए , जैसे-१- द उन्फोर्गत्ब्ल , २- मिरासिम ३-सजदा (लता जी के साथ) ४-इन साईट ५- इन सर्च ,६-इन सिंक (आशा जी के साथ) ७-अदा , ८-आवाज, ९- चिराग ,१०-दिल (लता जी और आसा जी के साथ )११-क्लोज तो माय हर्ट(उनके पसंद के गानों का संग्रह ) १२-लव इस ब्लाइंड,१३-माँ ,१४-फोरगेट मी नोट ,१५-सहर १६-संवेदना (वाजपेयीजी के गीत),१७-संयोग (नेपाली ग़ज़ल )१८-तूगेदर,१९-त्रिसना (बंगाली),२० कृष्ण (भक्ति गीत) इन अलबमो के अलावा भी दर्ज़नो और अल्बुम्स है जिनकी मुझे अभी जानकारी या यद् नहीं है

सन १९९० से जगजीत जी के जीवन में कई तूफ़ान आये और जगजीतजी काफी टूट से गए , १९९० में जगजीत जी के पुत्र विवेक जी का रोड एक्सीडेंट में मौत हो गयी और जगजीत जी काफी दिनों तक गम के साए में घिर गए , चित्र जी ने तो सार्वजनिक जगहों में जाना तक छोर दिया, जगजीत जी के दर्द को उनके गीतों में बाद में देखा गया | २००९ में चित्राजी के पहले पति से प्राप्त हुए बेटी मोनिका ने अपने निजी जीवन से तंग आकर खुदखुसी कर ली, चित्र जी और टूट सी गयी, जगजीतजी भी फिर गमो से घिर गए,|

गुलाम अली (गजल सम्राट) भी जगजीत जी की बहुत इज्जत करते थे , अपने अंतिम समय में जगजीत जी गुलाम अली के साथ एक परफोर्म करने लन्दन जाने वाले थे, किन्तु खुदा को कुछ और ही मंजूर था, २३ सिताम्बे २०११ को मस्तिस्क आघात के कारन लीलावती हसपटल मुंबई में उनको भारती होना परा, सरे देशवासियों की दुआओं के बावजूद करीब २ हफ्ते बाद दिनाक १० ओक्टुबर को जगजीत जी चिर-निंद्रा में चले गए, एक युग का अंत हो गया, मगर जगजीतजी आज भी जीवित है हमारे दिलो में और संगीत के हर स्वर में वो मौजूद है , वो मौजूद है !!!

thanks

vishal shresth

पादुका वियोग!!

 सन्डे की सुबह कुछ अलसाई हुई थी , अभी तो बस ६.३० ऐ एम् ही हुआ है, चल बस १० मिनट और, लोजी बज गए ७.३०, धत तेरे की!! अब हर काम जल्दी-जल्दी करो |

अरे  रे रे ! आप क्यों चौके? अच्छा जी आप सोच रहे हो काम-काजी युवक सन्डे को इन्नी सुबह उठ जाता है,दरसल बतवा इ है भाई साहब की हम जो है न सातो दिन ड्यूटी बजाते है, 

समझे की नहीं? सन्डे को हम जाते है सेवा देने मंदिर (इसकोंन) १०.३० तक निकल लेते है,फिर बस पाकर के २५ किमी दूर,करब १ घंटा बस से सफर और टोटल करीब २ घंटा लग जाता है घर से मंदिर के सीढियों तक पहुचने मे| 

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लो जी अब मुद्दों पे आ जाते है| मंदिर में हमेशा की भांति ही चहल पहल थी, पर बाद में सुशिल पर्भू और राकेश पर्भू के माध्यम से ज्ञात हुआ की आज काफी सारे भक्त-गण मथुरा औए अन्यंत्र गए है सेवा मे| 

मैं भी करीब 3.३० तक सेवा समाप्त कर अपने चरण कमल को जुटे घर की और ले चला, वहा पहुचने के पश्चात ज्ञात हुआ की हमारा चप्पल (पादुका ) किसी सज्जन भक्त ने अपना बता कर जुटे घर से ले उरे , थोरा दुःख हुआ क्युकी कल (शानिवार) को ही मैंने अपने जीवन में निजी उपयोग के लिए पहली बार एक हवाई चप्पल १७५ रुपये की खरीदी थी, न चाहते  हुए भी ६, ७ लोगो को चप्पल और उसकी कीमत बता दी, मगर अब न तो वो चप्पल मिलना था और न ही वो मिली, उस समय मुझे बचपन में पढ़ा एक शेर याद आ गया – “मस्जिद को जाते सारे नमाजी होशियार , एक बशर आता है जुटे चुराने को!” (शायद शेर अधुरा या गलत पोस्ट हो) 

दरसल हम भक्तगण जयादातर टोकन नहीं लेते बल्कि जुटे को अंदर बिना टोकन के रख कर चल देते है , उसी जल्दबाजी का भुगतान मुझे करना परा, कुछ लोग कहने लगे चलो भगवान जी ने आपकी चप्पल को पसंद कर अपने साथ ले गए, हमें पता है भगवान् जी को हमारे चप्पल में इंटेरेस्ट नहीं है, उनके पास न तो किसी चीज की कमी है न उनको कोई जरुरत है, ये तो उस खास इलाके के कुछ अत्यंत सज्जन प्राणी या भक्त का काम है, जो केवल प्रसाद खाने और इन्ही नेक कामो के लिए मंदिर आते है, प्रभु उनको सद्बुद्धि दे ! हा! और मैं कह ही क्या सकता हु|  

फिर हमने वही से एक जोरी चप्पल ली (दुकान से खरीदी) और निकल परे अपने घर की और|

घर लौटते वक़्त एक सवाल मन मस्तिक में कौंध रहा था , क्या इसीलिए कुछ लोग मंदिर आते है?

शायद इस प्रश्न का उत्तर मैं न धुंधू या जन-बुझ कर इस सवाल को टाल दू , पर सवाल तो सवाल है,      और ये सवाल केवल तब आता है जब कुछ ऐसी घटना घटे और सच मानिये मैं नहीं चाहता की किसी के साथ ये घटना घटित हो , कृपया मंदिर को मंदिर ही रहने दे, वहा लोग पाप छमा मांगने या विनती और मन्नत मांगने जाते है , कुछ लोग शांति तलाशने भी आते है वहा जूते बदलने  या चोरी करने न जाये, ये अलग बात है की जो ऐसे महान कृत्या करते है वो ब्लॉग या फसबूक नहीं पढ़ते ,

मगर हम लिखते तो है ! हाहाहा और जब दिल में बात आती है तो जुबान (ब्लॉग) पे भी आनी चहिये!

 

धन्यवाद् 

 

विशाल श्रेष्ठ  (c)  

“शरण गहु मै किसकि?”

राज चाहे पाण्डव का हो या कौरव का गरिब जनता और असहाय नारि कि व्यथा किसी के समझ मे नहि आति। सबको सत्ता का मोह है और ये सत्ता या कुर्सी का मोह प्राचिन (द्वापर-त्रेता) युग से सोनिया-मोदि (कलियुग) युग तक एक समान है। अन्तर सिर्फ़ इतना है पह्ले के समाज​-सुधारक और गुरु राजनिति के मार्गदर्शक होते थे, और आज वो खुद राजनिति के सुत्रधार होते थे। राजनिति कल भी छलने कि कला थी, आज भी छलियो और दगाबाजो कि जमात हि अग्रिणि भुमिका मे है।

और बेचारि जनता उसे आजतक पता नहि-“शरण गहु मै किसकि?”

नारि कि स्थिति तो और भी दयनिय है, आज हरियाणा कि हालात देख ले, पिछ्ले महिने औग्स्त मे १० से भी जयादा बलात्कार कि घटना दर्ज हुइ है, जो दर्ज नहि उस आक्ड़ो पे धयान भी नहि।

राज चाहे कौरव का हो या पाण्डवो का गरिब जनता का हाल तो बुरा हि रह्ता है। राज अगर कौरव का हो तो द्रौपदि का चिड़-​-हड़्ण होगा अगर पान्ड्वो कि हो तो द्रौपदि(गरिब जनता) जुए मे हारि जायेगि, दोनो हि परिस्थिति मे जनता के साथ कोइ नहि।

प्राचिन काल मे जब वैशालि मे गण्तन्त्रा कि पहलि-पहल वयव्स्था हुए थि तब राज जनता का, जनता के द्वारा , जनता के लिये चलाया गया शासन था, मगर आज यहि गण्तान्त्रीक वयव्स्था भ्रस्तो का भ्रस्तो के द्वारा भ्रस्तो के लिये चलाया गया शासन है।

तभी!!!! इस भ्रस्ताचार रुपि वयव्स्था का अन्त करने के लिये चमत्कारिक रुप से एक कृष्ण का उदय हुआ, उदय हुआ श्री अन्ना हजारे का,उनके साथ आये पाण्डव सेना और हम सभि को (आम-इन्सान) शायद उन्हि का इन्तजार था। सत्ताधारि दल ने उन्को कइ प्रलोभन दिये, डराया-धमकाया मगर श्री अन्ना हज़ारे टस से मस नहि हुए। यहा गल्ति हमने (आम-इन्सान) कि, हमने उन्हे ((पाण्ड्वो) हिरो (नायक्) बना दिया,हमने उन सभि को शिखर पे खरा कर दिया,उन्हे सत्ता की शक्ति और मह्त्वा दिखाया, परिणाम-स्वरुप वो (पाण्ड्व ) सत्तालोलुप हो गये। और – “विनाश कालाय विपरित बुद्धि।” पाण्ड्वो ने कृष्ण का त्याग कर दिया और राजनिति कि पथ के पथिक हो गये। बेचारे कलियुगि कृष्ण हक्के बक्के हो गये, वो अलग हि इन राजनेताओ कि जमात के खिलाफ़ खरे है और आगे भि वो इन भ्रस्त राजनेताओ के खिलाफ़ मशाल जलाकर लोगो मे अलख जगाते रहेङे।

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पाण्डव सेना के अग्रिणि श्री केजरिवाल कभि खबरिलाल बन जाते है कभि बिजलि मिस्त्रि, उन्हे अब भान नहि रहा कि इस पथ पे आगे क​एसे बधे, अब तो श्री हजारे रुपि कृष्ण भि नहि है पथ-प्रदर्षक के रुप मे, अब वो भट्क रहे है, कभि इस पथ पे कभि उस पथ पे! पथ भ्रस्त हो गये है श्री केजरिवाल !

सत्ता का मोह हि एसा है, ये बुद्धि क नाश कर देता है, पतन कि सुरुवात हो गयि है, पतन इमानदारि और देश्-भक्ति कि, पतन चरित्र कि, हाँ कल को वो कुछ सिटे शायद जित आवे, ५ या ६ सिटे लोक-सभा मे , फ़िर क्या? फ़िर सरकार को गिराने या बचाने के अलवा और कुछ कर भि नहि पायेंगे। क्युकि आक्ड़ो के खेल मे वो काफ़ि छोटे खिलाड़ि होंगे। सत्ता के शिर्ष पे जाने का सपना चुर्-चुर होना तय है।

कल ईतिहास कहेगा श्री हजारे का साथ छोर जाने वाला गद्दार है या शायद कुछ लोग उन्हे महान राज्नेताओ के श्रेणि मे रख भि दे, तो राजनेता कि इज्जत है हि कितनि? बस उतनि हि इज्जत मिलेगि केजरिवाल जि को।

नुकसान किसका?

नुकसान हुआ है आम-इन्सान का, क्युकि हमे एक और दल नहि चाहिये था, हमे इसे लोग चाहिये थे जो भ्र्स्ताचार रुपि दानव का दलन(दमन्) करे ना कि उसि भ्रस्त वयब्स्था का हिस्सा बन जाये।और लगे हमारा (आम्-इन्सान) खुन चुसने जैएसे दुसरे चुसते है, रक्त्-पिपासु राजनेता रुपि दैत्य ।

जब तक श्री हज़ारे किसि भि राजनेतिक पार्टि के नजदिक नहि और जब तक श्री हज़ारे भ्रस्ताचार रुपि दानव के खिलाफ़ है तब तक मै यहि कह्ता रहुङा आम आदमि से- “अन्ना शर्णम गच्छामि” और मै विशाल “शरण गहु मै अन्ना कि!”

और अन्त मे सिर्फ़ इतना केहना चाहुगा हमे श्री अन्ना हज़ारे का हाथ मजबुत करना है और सिर्फ़ और सिर्फ़ इमानदार लोगो को हि अपना बहुमुल्या वोट दे, और अपना मत जरुर दान करे

“मत दान सर्वश्रेठ दान !”

विशाल श्रेस्ठ     (c) 

 

 

नोट- सारे विचार मेरे अपने है और किसि भि तरह कि मतभेद य मनभेद के लिये छमा चाहुङा, तस्विरे हमने गुग्ल से लि है जिस्मे किसि भि प्रकार के कौपिराईट का भान नहि है,